पर्यावरणविद बहुगुणा का यूं चले जाना उत्तराखण्ड से एक युग का अंत: महाराज
- बहुगुणा उत्तराखंड के जंगल, मिट्टी, पानी और बयार को जीवन का आधार मानते थे
देहरादून। प्रदेश के पर्यटन, सिंचाई, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री श्री सतपाल महाराज ने पर्यावरणविद् पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए इसे प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया है।
चिपको जैसे विश्वविख्यात आंदोलन के प्रणेता रहे पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते पर्यटन, सिंचाई, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री श्री सतपाल महाराज ने इसे प्रदेश के साथ साथ पूरे देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया है। श्री महाराज ने कहा कि ‘पर्यावरण गाँधी’ श्री सुंदरलाल बहुगुणा सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सोलह दिन तक अनशन पर रहे। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होने पेड़ों को काटने का जम कर विरोध करने के साथ-साथ वृक्ष लगाने की मुहिम को संरक्षण दिया।
कैबिनेट मंत्री श्री सतपाल महाराज ने बताया कि पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उनको पुरस्कृत किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। श्री महाराज ने कहा कि पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाले महापुरुष का यूं चले जाना निश्चित ही देश एवं प्रदेश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
उन्होने कहा कि पर्यावरणविद् पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा उत्तराखंड के जंगल, मिट्टी, पानी और बयार को जीवन का आधार मानते थे। समाज के हित में किये गये उनके कार्यों और पर्यावरण के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार भी मिला था।
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