… और प्रोफेसर सुगाता बोस के ओजस्वी भाषणों को सुनकर तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा…
साबरमती आश्रम, अहमदाबाद (बी आर चौहान)। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रपौत्र और हार्वर्ड विश्वविधालय मे इतिहास के प्रोफेसर सुगाता बोस ने “गाँधी, नेताजी और भारतीय उपनिवेशवाद विरोधी संविधानवाद” पर बोलते हुए साबरमती आश्रम सभागार, अहमदाबाद में श्रौताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उन्होंने कहा कि डॉ बी आर अम्बेडकर को यह उम्मीद नही थी कि आगे आने वाले समय मे आपातकाल से संबंधित प्रावधानों को भारत में लागू किया जायेगा।
प्रोफेसर सुगाता बोस ने कहा की संविधान सभा में एक प्रस्ताव आया था कि यदि आंतरिक अशांति, युद्ध या बाहरी आक्रमण की वजह से भारत की सुरक्षा को कोई खतरा हो तो राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकते है।
ज्ञात हो कि भारत में इंदिरा गाँधी की सरकार ने आंतरिक व बाहरी कारणों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति से आपातकालीन घोषणा करवाई थी।
भारत में आपातकाल का यह दौर 21 महीने (1975 से 1977) तक चला।
उन्होंने आगे कहा कि संवैधानिक नैतिकता कोई स्वभाविक भावना नही है।
एक राष्ट्र एक चुनाव के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए प्रोफेसर बोस का मानना है कि संघवाद पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि थोड़े-थोड़े समय बाद चुनाव करवाना प्रशासन की दृष्टि से भी ठीक नही है।
जम्मू -कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित करने पर टिप्पणी करते हुए बोस ने कहा कि सिद्धांतरूप से यह केंद्र के लिये उस राज्य के कानूनी प्रावधानों के अनुरूप या प्रतिनिधियों की पूर्व अनुमति के बिना संघ के किसी भी राज्य का दर्जा कम करना या विभाजित करना आगे आने वाले समय के लिये समस्या खड़ी कर सकता हैं।