लंबे सफर की खूबसूरत दास्ताँ है युगवाणी…..
वरिष्ठ पत्रकार युगवाणी के संपादक संजय कोठियाल को मिला सम्मान
देहरादून । ये कहावत सत्य है कि बरगद के पेड़ की छांव भी किसी बुज़र्ग के आशीर्वाद से कम नही होती। उसकी मौजूदगी का एहसास ही काफी है। जिनकी छांव बचपन की सुनहरी यादे से निकलकर जवानी के खूबसूरत मोड़ पर पहुँचती है यही से जिंदगी के सफर की शुरआत होती है। कुछ ऐसा ही एहसास हमे युगवाणी से मिलता रहा है अपने लंबे सफर के उतार चढ़ाव की यादों को जिंदगी के कैनवस पर इस तरह उतारा कि आज वो एक खबसूरत तस्वीर के रूप में लोगों के दिलों में बस गयी है।
उत्तराखण्ड प्रेसक्लब की टीम ने आज मीडिया के रूप में युगवाणी को नई पीढ़ी की पत्रकरिता से रूबरू कराने का जो कार्य किया है वो काबिले तारीफ है , इससे एक नई शुरुआत बनी है उन गुजरे दौर के समाचार पत्र पत्रिकाओं को जानने और समझने के साथ नई पीढ़ी के पत्रकारों से रूबरू कराने का मिलेगा मौका ।
आजादी के अमृत महोत्सव पर उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल सभागार में आयोजित गोष्ठी में ‘स्वतंत्रता पश्चात उत्तराखंड की पत्रकारिता’ के सुनहरे दौर को याद किया गया। इस मौके पर 15 अगस्त 1947 को आरम्भ हुई ‘युगवाणी’ के 75 वर्ष पूर्ण होने पर उसके सम्पादक व क्लब के संस्थापक सदस्य वरिष्ठ पत्रकार संजय कोठियाल को सम्मानित किया गया।
वक्ताओं ने कहा कि पत्रकारीय सरोकारों को जीवंत बनाए रखने में उत्तराखंड के पत्रकार आजादी से पूर्व और बाद में भी अहम भूमिका निभाते रहे हैं और आज भी निभा रहे हैं। यहां तक कि बदले व्यावसायिकता के दौर में भी उन्होंने सामाजिक सरोकारों से मुंह नहीं मोड़ा। ऐसी ही जनपक्षीय पत्रकारिता की बदौलत समाज एवं राष्ट्र विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूती के साथ उन्नति की राह पर आगे बढ़ते चले गए।
गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं क्लब के संस्थापक सदस्य संजय कोठियाल ने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि हम आजादी से पूर्व और बाद की पत्रकारीय संघर्षों से नई पीढ़ी को परिचित कराएं। इसके लिए जरूरी है कि उस दौर की पत्र-पत्रिकाओं को संरक्षित करने की व्यवस्था हो। ताकि नई पीढ़ी को मालूम हो सके कि कैसे-कैसे संघर्षों से गुजरते हुए हम यहां तक पहुंचे हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि आजादी से पूर्व और आजादी के बाद प्रकाशित ऐसे पत्र जो अब अस्तित्व में नहीं हैं, हम उनकी प्रतियों को सुरक्षित तक नहीं रख पाए। सरकारों की ओर से भी उनके संरक्षण के बारे में सोचा तक नहीं गया। जबकि उन्हें डिजिटल फार्मेट में सुरक्षित रखा जा सकता था।
पर्वतीय सरोकारों से जुड़े डा.योगेश धस्माना ने कहा कि आजादी की लड़ाई में उस दौर के पत्रकारों ने दोहरी भूमिका का निर्वाह किया। वह जन-जन तक सूचना पहुंचाने का माध्यम तो बने ही, समाज एवं क्षेत्र की उन्नति को भी लगातार संघर्षरत रहे। बुद्धिबल्लभ पंत, सदानंद सनवाल, जीवानंद जोशी, विष्णु दत्त जोशी, बद्रीदत्त पांडे, गिरिजा दत्त नैथानी, पं.विश्वंभर दत्त चंदोला, आचार्य गोपेश्वर कोठियाल, राधाकृष्ण कुकरेती, प्रताप सिंह नेगी, बैरिस्टर मुकंदी लाल, स्वामी विचारानंद सरस्वती, कृपाराम मनहर मिश्र, देवकीनंदन ध्यानी, महेशानंद थपलियाल, रामप्रसाद बहुगुणा, हुलास वर्मा, भगवती पांथरी, भगवती प्रसाद, ललिता प्रसाद नैथानी, डा.भक्त दर्शन आदि ऐसे ही पत्रकार रहे, जिन्होंने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर सामाजिक सरोकारों को हमेशा सर्वोपरि रखा।
गोष्ठी में कवि राजेश सकलानी, उत्तरांचल प्रेस क्लब के अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल, महामंत्री ओपी बेंजवाल, सृजन समिति के संयोजक दिनेश कुकरेती, पूर्व अध्यक्ष योगेश भट्ट व देवेंद्र सती, वरिष्ठ पत्रकार रमेश पुरी आदि ने विचार रखे। इससे पूर्व, प्रेस क्लब की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव पर वरिष्ठ पत्रकार एवं क्लब के संस्थापक सदस्य संजय कोठियाल को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंग वस्त्र, स्मृति पत्र व क्लब की डायरी भेंट की गई। गोष्ठी में क्लब कार्यकारिणी सदस्य राजकिशोर तिवारी व राजेश बड़थ्वाल समेत बड़ी संख्या में पत्रकार एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग मौजूद रहे।