बंद फाइलों में दम तोड़ती सिसकियां :  बेखोफ गुनहगार कर रहे है मौज

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देहरादून। जिस्म फरोशी व यौन उत्पीड़न की घटनाएं आये दिन देहरादून शहर में बढ़ती ही जा रही है। पुलिस और कानून के नुमाइंदो की सरपरस्ती में रहकर गैंग रेप व यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराधो को मिल रहा है संरक्षण। अगर पूरे साल भर का आंकलन किया जाये तो न्यायालयों में अनगिनत यौन उत्पीड़न के मामले बंद फाइलों में धूल फांक रहे है। बेबस लाचारों की फर्याद न्यायालयों तक नही पहुंच पाती आखिरकार मामला बगैर निर्णय के ही गुनहगार के पक्ष में चला जाता है। इन्ही कारणों की वजह से गुनहगारों के हौसले बुलन्द होते जा रहे है।

दुर्भाग्य की बात ये है कि यौन उत्पीड़न से पीड़ित युवती या उसका परिवार अगर कानून का सहारा लेता है तो उसकी कोई सुनवाई नही हो पाती। न्याय को लेकर उसके द्वारा लगाए गए आरोपी व उसकी फरियाद का कोई वजूद नही रह पाता। आखिर बेबस लाचारी से मजबूर होकर युवती को खुदकुशी का रास्ता इख्तियार करना पड़ जाता है। हालात के चलते मजबूर या दबाव में आकर चुप्पी साध ली जाती है। बाद में उक्त मामले की फाइलें बंद हो जाती है।
एसा ही एक प्रकरण बिजनौर की रहने वाली महिला का है जिसका लंबित मुकदमा न्यायालय में विचारधीन है। महिला का आरोप है कि नशीला पदार्थ खिलाकर जबरन उसे देहरादून लाया गया था। उसके साथ पांच दिनों तक जबरन योन सम्बन्ध बनाया गया। अभियुक्तों के चंगुल से बचकर भागी महिला ने बाद में न्यायलय की शरण ली।पीड़ित महिला का कहना है कि बार बार न्यायायलय के चक्कर काटते हुए अभी तक उसे न्याय नही मिल पाया है जबकि वकालत में फाइल किया गया नए अधिवक्ता का वकालतनामा भी अभियुक्तों को उनके अंजाम तक नही पहुंचा पाया। लंबे समय से न्याय की गुहार कर रही महिला की अभी तक कोई सुनवाई नही हो पाई ।

पाश्चात्य देशों के पहनावे और संस्कृति की होड़ में विकृत होती जा रही भारतीय संस्कृति को बचाना इस देश की सरकार का प्रमुख एजेंडा होना चाहिए। अगर निर्भया का बलिदान और वर्तमान कानून भी पीड़ितों को राहत नही दिला पा रहा है तो शायद एक और कठोरतम कानून की नितांत आवश्यकता है।

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