ऐ कु निर्विजू करा……
पारिस्थितिकी तंत्र कि बहाली अर धरती तैं उपज लैक बणौणा लिहाज से विज्ञानी दुश्मन वनस्पतिक प्रजात्यों को उन्मूलन खुण राष्ट्रीय हिमालयन अध्ययन संस्थान विचार कन् छ। हिमालयी क्षेत्रों मा तेज़ी से विस्तार ल्हेदी खेती कि शत्रु वनस्पत्यों तै कन्न क्वै खात्मा करे जाव। अध्ययन से पता चलि बल कि मध्य हिमाले मा 500 से जादा विदेशी प्रजाति छन जोकि खेती किसाणी कि दुश्मन साबित होणी छन। यूंमा 34 प्रतिशत से जादा लैटाना अर गाजर घास शमिल छन। पता चलि कि मानव स्वास्थ्य तैं जख यिनु नुकसान पौछौण वळि छन वखि मिट्टी की उर्वरा शक्ति तैं बि क्षीण कन वळि छन। फिलाल मध्य हिमाले मा समुद्रतल बटी 1500 से 2500 मीटर तक कि ऊंचे वळा क्षेत्र मा संस्था का वैज्ञानिक अध्ययन कना छन। वैज्ञानिको को मत छ कि यूं विदेशी प्रजात्यों से उत्पन्न समस्यों अर संकटो तैं लाभ का मौकों मा बदल्नै कोशिश करे जाव। किलै कि यूंका औषधीय प्रयोग बि छन। भारतीय परम्परा चिकित्सा विज्ञान मा यु तेल सूजन अर दर्दनाशक मने जांद।
चौतफी चूनौत्यों को मुकाबला कन वळि पहाड़ी प्रदेश कि खेती-किसाणी पलायन अर जंगळी जानवरों से पैलि हि बरबादी को दश झेलणी छ वखि किसाणी पर कुमर कि तरां चिपटी वनस्पति जन कि लैटाना अर गजर घास यिथगा विस्तार हासिल कर चुकि ग्ये कि वैसे निवटणु अब एक चुनौती बण ग्ये। एक अध्ययन का मुताबिक यूं वनस्पत्यों का निवारण वास्ता शोध मा लग्यां विज्ञान्यों को बोनु छ कि अब तक उत्तराखण्ड का पहाड़ी प्रदेश मा करीब दस प्रतिशत जमीन पर विदेशी लैंटाना अर गजर घास को साम्राज्य फेल चुकि ग्यें। यूँका अलावा प्रदेश मा 165 प्रजाति यिनि छन जो कि वख कै प्रयोजन लैक नि रैंदी। वृंका विस्तार का कारण जो खेती लैक जमीन छ वो बि कम पड़द जाणी छ। खासतौर पर लैंटाना तैं शुरू मा ग्रामीण लोगुन गंभीरता से नि ल्हे।