दूर करो शिकवे गिले…….राज्य स्थापना की मधुर बेला
(सुभाष कुमार.. प्रेमबन्धु की कविता)
दूर करो शिकवे गिले……
गुजर गया सँघर्षो का दौर अब आयी है खुशाहालियाँ। खत्म हए शिकवे गिले, दूर हुई तन्हाईयाँ ।।
राज्य स्थापना की इस मधुर बेला में अब तो गूंजने लगी है शहनाइयां ।।
बढ़ने लगी है दिलों की धड़कन । दूर हुई गहराइयाँ।
लंबे अरसे से जिस चमन के खातिर हमने जीती थी लड़ाईयां ।।
खत्म हुए शिकवे गिले…..
आज मुरझाए हुए उन कलियों के खिलने की है तैयारियां।
खुशियों की बाहें फैलाएं नई सुबह ने ली है अंगड़ाइयाँ।
करो स्वागत इनका, मुस्कराकर तुम, भूला दो उसे दिल मे है जो नफरत की चिंगारियां ।।
बुरे दौर के गुजरे पल है बीते दिनों की है परछाइयां ।
अलविदा करो उन्हें जिनसे मिली है तुम्हे दुश्वारियां । खत्म हुए शिकवे गिले……