कही जंगलों में आगजनी की घटनाओं से तो नही सूख रहे हैं जलस्रोत

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देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से पहाड़ो की सदावाहिनी जलधारा देने वाले जलस्रोत सूखने के कगार पर हैं जहां शहरी क्षेत्रों में पानी की किल्लत हो रही हैं वही ग्रामीण क्षेत्रों में भी पानी कम होता जा रहा हैं समय रहते इन जलस्रोतों पर ध्यान नही दिया गया तो ग्रामीण क्षेत्र में भी पानी की बड़ी दिक्कते होगी। पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी के नेतृत्व में पानी के जलस्रोत बचाने का कार्य किया जा रहा है उनके द्वारा टिहरी गढ़वाल के मरोड़ा में पठवाड़ा जलस्रोत की सफाई की गई।
सूखते जलस्रोतों के बारे में पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी का कहना है गर्मी आते ही जंगलों में आग लग जाती हैं पूरे जंगल स्वाह हो जाते हैं जिसका सीधा प्रभाव हमारे प्राकृतिक जलस्रोतो पर पड़ रहा हैं जो जलस्रोत सदावाहिनी होते थे आज वे सूखने के कगार पर हैं समय रहते इन जलस्रोतों की ओर ध्यान नही दिया गया तो वो दिन दूर नही होगा जब पहाड़ के लोग पानी के लिए तरसेंगे जिसका सीधा प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगो उनके खेती, पशुपालन, जंगली जानवरों, पशु पक्षियों और जंगलों पर पड़ेगा समय रहते इन्हें सूखने से बचाना जरूरी हैं पहाड़ी व ग्रामीण क्षेत्रों में जो हैंडपंप लगे थे वे भी सूख गए है उनमें पानी कहा से आएगा पूरे जंगल तो आग से धधक रहे है इस तपती गर्मी से भूमिगत जल स्तर ही नही रह गया है। आज सबसे बड़ी चुनौती जलस्रोतों को बचाने की है ताकि इनमें सदा पानी रह सके और प्राणीजीवन को बचाया जा सके जिसके लिए लोगो को आगे आना चाहिए और जंगलों में आग नही लगानी चाहिए हमारे जंगल सुरक्षित रहेंगे तो पानी के जलस्रोत भी संरक्षित रहेंगे जिनमें सदा पानी बना रहेगा। जलस्रोत के सफाई करने में विपिन मनवाल, राजपाल नेगी, नितिन हटवाल, सर्वेश नेगी आदि सम्मलित हुए।

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