मुफलिसी ने छीना सहारा तो गिरते कदमों को हाथों ने फिर थाम लिया….
बुरे वक्त में ललित ने दिया सहारा तो मुकुल अग्निवीर बनकर लौटे
किसी इंसान के लिए कभी-कभी इतना ही साथ काफी होता है ।
कि कंधे पर हाथ भर रख देने से ।
गहरे से भी गहरा जख्म हल्का हो जाता है।।
कोविड के दौर में पिता की मौत के बाद मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया। फिर ब्रेन हेमरेज मां की मौत होने से दोनों भाई दर-दर की ठोकरें लगे। बागेश्वर निवासी दो भाईयों को ऐसे वक्त पर दून के ललित मोहन जोशी ने सहारा दिया। आज इनमें एक भाई अग्निवीर की ट्रेनिंग पूरी कर चुका है, छोटे भाई ने पढ़ाई पूरे करने के साथ होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा किया और वह जॉब ट्रेनिंग कर रहा है।
बागेश्वर निवासी मुकुल जोशी सेना की वर्दी पहनकर रविवार को जब कंबाइंड पीजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च पहुंचे तो इंस्टीट्यूट के संचालक ललित मोहन जोशी का सीना भी गर्व से चौड़ा था। ललित मोहन बताते हैं कि उन्हें जब दोनों भाईयों के मुफलिसी के बारे में पता चला था तो उन्होंने मुकुल और सूरज को अपने पास बुलाया था और उन्हें पढ़ाई से लेकर करियर बनाने, रहने, खाने तक की पूरी मदद देने का वादा किया। सेना के अग्निवीर बने मुकुल के मुताबिक पिता पटेलनगर में ठेली लगाते थे। कोरोना में सब बंद हो गया, तो पिता डिप्रेशन में आ गए और उनकी मौत हो गई। फिर मां बीमार रहने लगी और 2022 में मां की मौत के बाद दोनों भाई पूरी तरह सड़क पर आ गए। मकान मालिक ने सामान तक जब्त कर लिया। कई रातें रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और सब्जी मंडी में खुले में गुजारीं। इस बीच ललित मोहन जोशी उनकी मदद के लिए आगे आए और उनकी मदद से दोनों भाई आज अपने पांव पर खड़े हो गए हैं। मुकुल रानीखेत में अग्निवीर भर्ती में शामिल हुए, ललित मोहन जोशी की मदद से मिली ट्रेनिंग और हौसले से वह भर्ती हो गए। छह महीने की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद छुट्टी मिली तो रविवार को सबसे पहले उनसे ही मिलने के लिए दून पहुंचे। ललित मोहन जोशी ने मुकुल को उसकी कामयाबी पर बधाई दी है, साथ ही कहा कि उनका इंस्टीट्यूट जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए किए जा रहे अपने प्रयासों को यूं ही जारी रखेगा, ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर सकें।