गोष्ठी मे अधिवक्ताओं ने समान नागरिक संहिता के महत्वपूर्ण पहलुओं को किया उजागर….

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देहरादून।  लॉ कॉलेज प्रेमनगर देहरादून के सभागार में उत्तरांचल विश्व विद्यालय एवं अधिवक्ता परिषद देहरादून देहरादून इकाई के सौजन्य से समान नागरिक संहिता विषय मे गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें काफी संख्या में छात्र, अधिवक्ता एवं समाज के प्रबुद्धजन मौजूद रहे।

मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल  विक्रमजीत बनर्जी द्वारा समान नागरिक संहिता विषय पर सम्बोधित करते हुए बताया गया कि बाबा साहेब का सपना था जिसे वो पूरा नही कर सके आज भी हम 75 साल बाद इस पर चर्चा कर रहे है तो ये हमारी नाकामी भी दिखाती है। संविधान की प्रतिबद्धता के बाद भी क्यों लागू नही हुआ यह चिंता का विषय है।
UCC का लागू करने का जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वो है महिलाओं की कानून में समानता देना। इससे किसी के धर्म को कोई खतरा नही है बल्कि नए भारत के लिए समान नागरिक संहिता एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसकी अनदेखी अब नही होनी चाहिए। भारत के नागरिक होने के नाते समान नागरिक संहिता हमारा अधिकार है।
कुछ चीज़े है जिस पर हमें चर्चा करनी चाहिए क्योंकि अभी भी भ्रम की स्थिति है। उन्होंने नागालैंड का उदाहरण देते हुए बताया कि जनजाति समाज मे भी इसको लेकर भ्रम की स्थिति है। व्यक्तिगत कानून है। हिन्दू कानूनों में भी काफी विविधता है चाहे उत्तराधिकार का प्रश्न हो, विवाह के प्रश्न हो।
हमें UCC बनाना है लेकिन इन सभी बिन्दुओ को भी ख्याल रखना है। मेरा एक सुझाव है सभी व्यक्तिगत कानूनों को De codified कर दिया जाए।
बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा कि जब सभी कानून सामाजिक स्तर पर माने जाते थे जिन्हें कोडिफाइड करके खत्म कर दिया गया।
ये कहना गलत है कि UCC को भारत मे लागू नही किया जा सकता। UCC को तैयार करते हुए इन सभी बिंदुओं पर चर्चा करनी चाहिए।

चार्टर ऑफ राइट भी एक नागरिक के तौर पर जरूरी है। समय आ गया है जब समान नागरिक संहिता को लागू किया जाए। आज 75 वर्ष बाद हमने इस विषय पर चर्चा शुरू की है। नए भारत की नींव में समान नागरिक संहिता की जरूरत है क्योंकि भविष्य में सामाज के आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति को न्याय मिले इसलिये भी जरूरी है।

विशिष्ट अतिथि श्री लोकपाल सिंह जी द्वारा कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए बताया गया कि संविधान सभा मे समान नागरिक संहिता की प्रासंगिता को बताया गया लेकिन कुछ कारणों से इसे लागू नही किया जा सका । जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने कई निर्णय में दोहराया गया एवं इसकी जरूरत को बताया। उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जहां UCC को लेकर एक सार्थक कानून को लेकर प्रयासरत है। उन्होंने बताया कि कानून के समक्ष समान संरक्षण के लिए समान नागरिक संहिता एक प्रभावी कदम है।

गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) लोकपाल सिंह, अधिवक्ता परिषद की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष श्रीमती जानकी सूर्या, उत्तरांचल यूनिवर्सिटी के डीन श्री राजेश बहुगुणा, जितेंद्र जोशी, वरिष्ठ अधिवक्ता टी.एस. बिंद्रा, प्रशांत सिंगल,तथा काफी संख्या में छात्र, अधिवक्ता एवं समाज के प्रबुद्धजन तथा हरिद्वार, रुड़की एवं बार एसोसिएशन से काफी संख्या में अधिवक्ता भी मौजूद रहे।

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