बीते सवा लाख सालों में इस साल की जुलाई रहेगी सबसे अधिक गर्म
जगमोहन सिंह
दिल्ली। जर्मनी की लाइपजिग यूनीवर्सिटी में हुए ताज़ा शोध की मानें तो इस साल, बीते लगभग सवा लाख साल बाद जुलाई का महीना सबसे गर्म रहेगा।
अब तक साल 2019 की जुलाई सबसे गर्म जुलाई का महीना थी। मगर इस साल, जुलाई का औसत तापमान 2019 के मुक़ाबले 0.2°C बढ़ा गया है और वैज्ञानिकों की मानें तो गर्मी की ऐसी मार के लिए मानव गतिविधियां सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं। वैज्ञानिकों ने इस बात के लिए भी चेताया कि आने वाले समय में स्थितियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं।
दरअसल, लाइपजिग यूनीवर्सिटी में कार्यरत जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर कास्टन हौशटाइन द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक एक लाख 20 हजार वर्षों में इस साल जुलाई का महीना सबसे गर्म माह होगा। ऐसा इसलिये है क्योंकि मौजूदा औसत तापमान कोयला, तेल और गैस को जलाने तथा प्रदूषण फैलाने वाली अन्य इंसानी गतिविधियों के कारण पैदा हालात के मुकाबले करीब डेढ़ डिग्री सेल्सियस ज्यादा है।
हाल के वर्षों में वैश्विक तापमान में वृद्धि के बावजूद ला नीना (ठंड) के प्रभाव के कारण दुनिया पर इसका असर अपेक्षाकृत कम ही रहा। अब, जब दुनिया अल नीनो (गर्मी) के दौर में दाखिल हो रही है, तब ग्लोबल वार्मिंग के नयी ऊंचाईयों पर पहुंचने के आसार प्रबल हो जाएंगे।
जुलाई ने आग लगाई
जुलाई के महीने में वैश्विक स्तर पर हुई चरम मौसमी घटनाओं और उनके बुरे नतीजों की एक सूची यहां देखी जा सकती है।इस महीने तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का यह मतलब नहीं है कि दुनिया की सरकारें पैरिस समझौते में वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को हासिल करने में स्थायी रूप से नाकाम हो चुकी हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि वैश्विक स्तर पर औसत वार्मिंग को दीर्घकालिक समय मापदंड पर नापा जाता है। ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी एक महीने में तापमान में पूर्व-औद्योगिक औसत के मुकाबले डेढ़ डिग्री सेल्सियस से ज्यादा इजाफा हुआ हो। इससे पहले वर्ष 2016 और 2020 में भी ऐसा हो चुका है। यह अलग बात है कि उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी के दौरान ऐसा पहली बार हुआ है।मगर ख़ास बात ये है कि इस महीने तापमान में हुई वृद्धि सहमत अधिकतम दीर्घकालिक स्तर पर है। यह इस तथ्य को जाहिर करता है कि हालांकि सीमा अभी तक नहीं टूटी है मगर एमिशन में कटौती की कार्रवाई अब भी नाकाफी है और दुनिया पैरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम होने की तरफ बढ़ रही है। अन्य जलवायु वैज्ञानिकों ने इस बात के लिये आगाह किया था कि जुलाई अब तक का सबसे गर्म महीना होने वाला है लेकिन डॉक्टर हौशटाइन के विश्लेषण में इसकी पुष्टि सबसे पहले की गयी थी और इस महीने के औसत तापमान का पूर्वानुमान पेश किया गया था।
भारत पर बदलती जलवायु के प्रभाव
बारिश की तीव्रता और हीटवेव की आवृत्तियों में बढ़ोत्तरी सीधे तौर पर समुद्र और सतह के तापमान में वृद्धि का प्रभाव हैं। बात सीधे तौर पर भारत की करें तो जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा होने वाली वार्मिंग के कारण भारत में मानसून जानलेवा आफत बन गया है और बारिश की तर्ज में बदलाव की वजह से जगह-जगह बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। गर्मी ज्यादा होने की वजह से वातावरण में और अधिक नमी भर जाती है। इसकी वजह से मौसम सम्बन्धी अप्रत्याशित घटनाएं होती हैं, जैसा कि उत्तर-पश्चिमी भारत में हुआ भी है। बढ़ती गर्मी की वजह से न सिर्फ मानसून की परिवर्तनशीलता बढ़ी है बल्कि बारिश को लेकर सही पूर्वानुमान लगाना भी पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है।