कई अनसुलझे सवाल व अनमोल यादे छोड़ गयी बलूनी ताई….
उनकी मौत से खत्म हुआ आंदोलन का एक् स्वर्ण युग…..
देहरादून। मंद मुस्कान, आँखो मे उम्मीद के सपने लिए लोगो को अपने विचारों व सम्बोधन से आंदोलन मे चेतना जाग्रत कराने वाली वरिष्ठ आंदोलंकारी व हमारी प्यारी ताई अब हमसे बहुत दूर चली गयी है। अब तो सिर्फ ख्यालो व यादों मे मुस्कराता हुआ उनका चेहरा ही याद रह जायेगा।
लम्बी बीमारी से जूझ रही वरिष्ठ आंदोलंकारी सुशीला बलोनी लड़खाते कदमों के बावजूद आंदोलन से जुड़े हर मसले को हल करने मे कभी पीछे नहीं हटी।
सुशीला बलूनी जी का जन्म मूल रूप से बडकोट के चक्र गांव में जिला उत्तरकाशी में हुआ था।
वो मायके से डोभाल थी।
उनका विवाह स्व० नन्दा दत्त बलूनी से जिला पौड़ी गढ़वाल में यमकेश्वर ब्लॉक के ग्राम वरगड़ी में हुआ था।
वह लम्बे समय तक देहरादून बार एसोसिएशन की सदस्य भी रही।
वह जनता दल में रहते हुए 1979 में देहरादून नगर पालिका की नामित सभासद भी रही। उसके उपरान्त वह उक्रांद में शामिल हो गई। पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए आंदोलन की लड़ाई में कचहरी प्रागण में धरने पर बैठने वाली पहली महिला थी। उनके साथ रामपाल और गोविन्द राम ध्यानी थे।
वह संयुक्त संघर्ष समिति की महिला अध्यक्ष के रूप में लगातार संघर्ष रत रही। राज्य आंदोलन के दौरान वह पूरे प्रदेश के भ्रमण व लखनऊ से लेकर दिल्ली तक संघर्षरत रही।
वह शराब बंदी से लेकर महिलाओं के उत्थान से लेकर राज्य आंदोलन के लिए जेल भरो , रेल रोको , धरना प्रदर्शन आदि में मुख्य भूमिका निभाई।
उनके परिवार से बड़े पुत्र विनय बलूनी , संजय बलूनी , विजय बलूनी एवं पुत्री शशि बहुगुणा एवं उनके परिजन सभी मौजूद रहे।
उनके देहांत की खबर सुनकर राज्य आंदोलनकारी व सामाजिक कार्यकर्ता व आस पड़ोस के लोग जिनमे राज्य आंदोलनकारी मंच के जगमोहन सिंह नेगी , केशव उनियाल , रामलाल खंडूड़ी प्रदीप कुकरेती पिछड़े वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक वर्मा , मेयर सुनील उनियाल गामा , पूर्व मंडल अध्यक्ष विजय थापा , उक्रांद के शांति भट्ट , भाजपा किसान मोर्चे के योगेंद्र पुंडीर , व्यापार संघ के अनिल बग्गा , युद्धवीर पंवार , आई० टी० आई० संघ के रविन्द्र सोलंकी , विपिन नेगी , रघुवीर नेगी , मोहन गुसाई , सुनील नोटियाल आदि ने अपने अश्रुपूर्ण रूप से उन्हे नमन किया।
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