आचार संहिता को ठेंगा दिखाती विभागीय अधिकारियों की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली
स्थानान्तरण के नाम पर औपचारिकता का ढोंग क्यो?
देहरादून। प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त बनाने हेतु 30 दिसम्बर को मुख्य सचिव द्वारा विभिन्न विभागों से बिन्दूवार कर्मचारियों के स्थानान्तरण के आदेश तय किये गये थे। परन्तु 7 जनवरी को शिक्षा विभाग व पशु पालन विभाग में मनमाने, नियम विरूद्व स्थानान्तरण हुए जबकि 8 जनवरी को आचार संहिता लागू होते हुऐ शिक्षा विभाग ने स्थानान्तरण पर रोक लगाते हुए जो कार्य मुक्त हुऐ उन्हे अपने मूल तैनाती पर वापिस कर दिया गया इसके बावजूद क्या वजह रही कि पशुपालन विभागों के बिन्दूवार कर्मचारियों को स्थानान्तरित किये जाने के बाद जो कार्यमुक्त हो गये थे उन्हे क्यो वापिस नही लिया गया। ये सवाल सम्बन्धित विभागीय अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
इसी कडी में आयुर्वेेेद एवं युनानी सेवायें विभाग में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले हुए 27 फार्मेसिस्ट के नाम तबादलों पर सवाल उठने लगे है। इनमें से कई फार्मेसिस्ट ऐसे है जिन्हे एक जगह पर स्थानान्तरित होकर आऐ डेढ़ साल भी नही हुऐ है। इस बारे में राज्य निर्वाचन आयोग में भी शिकायत की गयी है।
देहरादून के फार्मेसिस्टों ने भी जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी से मिलकर अपनी बात रखी है।
शासन के इस ढुलमुल रवैया को लेकर वनविभाग में भी भारी रोष व्याप्त है। इस सम्बन्ध में उत्तराखण्ड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति ने चुनाव आचार संहिता के बीच हरिद्वार में वन विभाग के तबादलों पर नाराजगी जताई है। समिति ने इस बाबत मुख्य निर्वाचन अधिकारी को ज्ञापन भी प्रेषित किया है।
समन्वय समिति के सचिव संयोजक शक्ति प्रसाद भटट् व पूर्णानंद नौटियाल ने आरोप लगाया है कि मुख्य वन संरक्षक गढवाल के स्तर से बिना चुनाव आयोग की अनुमति के 5 जनवरी को अपने स्तर से देहरादून के लेखाकार और हरिद्वार के प्रधान सहायक का तबादल कर दिया गया है। उन्होने कहा कि जब सरकार ने तबादला सत्र शुन्य घोषित किया हुआ है। फिर भी किसी आवश्यक तबादले के लिये चुनाव आयोग की अनुमति आवश्यक है।
उन्होने कहा कि इस मामले की जांच निष्पक्ष हो और सम्बन्धित अधिकारियों के खिलाफ दण्डनात्मक कार्यवाही होनी चाहिए।
इस मामले में स्थानान्तरण के आदेष निर्गत किये गये विभगाीय सूची सलग्नं हैः-