हम में हैं दम…… पेपर लीक मामले में सीबीआई जांच पर श्रेय लेने की होड़…..

देहरादून । उत्तराखंड के नेता भय, भूख, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने और शासन-प्रशासन की कार्य शैली को सुचारू और पारदर्शी बनाने में नाकाम सही लेकिन उन्हें आपदा में भी अवसर तलाशने तथा श्रेय लेने के युद्ध कौशल में इतना महारत हासिल है कि उन्हें विपक्षी दलों के नेता तो क्या उनके अपनी पार्टी के बड़े से बड़े नेता भी नहीं पछाड़ सकते हैं। राजधानी की सड़कों पर लगे वह पोस्टर जिसमें लिखा है त्रिवेंद्र में है दम’ इसका ताजा उदाहरण है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 2022 के विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भी हाई कमान द्वारा दोबारा सीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका क्या दिया गया उनकी पार्टी के ही तमाम बड़े नेताओं की वह आंख की किरकिरी बने हुए हैं। वह अब गए तब गए जैसी खबरें जिन्हें आप अफवाह भी कह सकते हैं, क्योंकि वह धीरे-धीरे अब अपने 0.2 के कार्यकाल को भी पूरा करने की ओर अग्रसर है अपनी कुर्सी पर बरकरार बने हुए हैं। जबकि जो यह बातें कहते हैं कि आप देखें जरा किसमे है कितना दम, वह अभी तक उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके हैं। पेपर लीक और हल्द्वानी में हुई सांप्रदायिक हिंसा तथा राज्य में आई मानसूनी त्रासदी जैसी स्थितियों के बीच हुए कुछ उपचुनाव, नगर निकाय चुनाव और त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में ही नहीं लोकसभा चुनावों में भी भाजपा के सभी पांचो सीटों पर जीत ने भी उनकी स्थिति को लगातार मजबूत किया है। जिसे उनकी ही पार्टी के नेता पचा नहीं पा रहे हैं। अभी यूकेएसएसएससी परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक होने के बाद युवा बेरोजगार इसे लेकर सड़कों पर उतर आए थे उनकी मांग थी कि मामले की सीबीआई जांच कराई जाए तथा परीक्षा रद्द कर दोबारा परीक्षा कराये। लेकिन सीएम धामी को कुछ निकटस्थ सलाहकारों ने इसे पेपर लीक की घटना न मानने और आंदोलन को सख्ती से खत्म करने की राय दे दी गई जिससे स्थितियां बिगड़ गई और युवा आर-पार की लड़ाई लड़ने पर उतर आए, लेकिन अंतिम दौर में धामी ने हवा का रुख को भांप लिया तथा सीबीआई जांच की मांग को न सिर्फ मान लिया गया बल्कि पूरी संवेदनाओं के साथ वह बेरोजगारों के बीच खड़े हो गए। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जो खुद भी छात्रों के साथ सीबीआई जांच की बात कह रहे थे, घोषणा होते ही पहले अपने आवास पर जश्न मनाते हैं और अब राजधानी की सड़कों को पोस्टरो से पाट देते हैं जिसमें लिखा है त्रिवेंद्र में है दम, इसे पढ़कर या देखकर ऐसा लगता है जैसे बेरोजगारों के आंदोलन के कारण नहीं त्रिवेंद्र सिंह की मेहनत के कारण ही सरकार सीबीआई जांच को तैयार हुई हो और सरकार को त्रिवेंद्र के दबाव में ही यह फैसला लेना पड़ा हो। त्रिवेंद्र के इस श्रेय लेने की राजनीति के खूब चर्चा भी हो रहे हैं।