‘शिशु सथी’ योजना के अंतर्गत मिली नई जिंदगी ! मेडिका में बिना सर्जरी के नौ माह की बच्ची ने दुर्लभ हृदय रोग को दी मात….

देहरादून । दक्षिण दिनाजपुर के हिली की नौ माह की एक बच्ची ने असाधारण साहस और चिकित्सकीय कौशल की मिसाल कायम करते हुए बिना सर्जरी के एक जटिल हृदय प्रक्रिया से जीवनदान पाया है। यह जीवनरक्षक प्रक्रिया मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल (मणिपाल हॉस्पिटल्स नेटवर्क की इकाई) में डॉ. अनिल कुमार सिंघी, प्रमुख – पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी एवं सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न की गई। इस प्रक्रिया में एनेस्थीसिया, कार्डियोलॉजी, पीडियाट्रिक्स तथा सीटीवीएस सर्जिकल टीम की बहुविशेषज्ञ टीम का सहयोग निर्णायक रहा।

इस उपचार को पश्चिम बंगाल सरकार की ‘शिशु सथी’ योजना के अंतर्गत निःशुल्क प्रदान किया गया, क्योंकि किसान परिवार से आने वाली इस बच्ची के परिजन इतना महंगा उपचार वहन नहीं कर सकते थे।

बच्ची “अनन्या” (परिवर्तित नाम) का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था और 2024 के अंत से ही उसे सांस लेने में परेशानी और वजन नहीं बढ़ने की समस्या थी। दवाइयों से कोई विशेष लाभ न मिलने पर परिजन चिंतित हो उठे। चार माह की उम्र में ही स्थानीय जांच में उसे जन्मजात जटिल हृदय दोष का पता चला।

बाद में उसे मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल भेजा गया, जहां डॉ. अनिल कुमार सिंघी के नेतृत्व में पीडियाट्रिक एवं कंजेनिटल हार्ट डिजीज टीम ने जांच के बाद ‘एऑर्टोपल्मोनरी विंडो’ नामक एक दुर्लभ और गंभीर हृदय दोष की पहचान की। यह स्थिति हृदय की दो प्रमुख धमनियों — महाधमनी (एऑर्टा) और पल्मोनरी आर्टरी — के बीच असामान्य जुड़ाव के कारण उत्पन्न होती है, जिससे फेफड़ों में सामान्य से चार गुना अधिक रक्त प्रवाह हो रहा था और हृदय विफलता की स्थिति बन रही थी।

डॉ. सिंघी ने बताया, “इस तरह के दोष का इलाज आमतौर पर छह माह की उम्र से पहले ओपन-हार्ट सर्जरी से किया जाता है। नौ माह की उम्र में फेफड़ों को नुकसान का खतरा बहुत अधिक था, लेकिन हमने मेडिका में एक कम आक्रामक ट्रांसकैथेटर क्लोजर तकनीक अपनाने का निर्णय लिया। हमने बच्ची की टांग की नसों से एक डिवाइस हृदय तक पहुंचाया और स्थानीय एनेस्थीसिया में ही उसे सफलतापूर्वक बंद कर दिया। पहली कोशिश असफल रही, लेकिन दूसरी बार में हम सफल हुए। डिवाइस पूरी तरह फिट हुआ और कुछ ही मिनटों में फेफड़ों का दबाव काफी कम हो गया।”

उन्होंने आगे कहा, “इतनी छोटी बच्ची में इतने बड़े हृदय दोष को बिना ओपन सर्जरी के बंद करना बेहद दुर्लभ उपलब्धि है। समय पर हस्तक्षेप और सही विशेषज्ञता से यह संभव हो सका।”

यह प्रक्रिया 14 मई 2025 को हुई और बच्ची को अगले दिन ही आईसीयू से स्वस्थ अवस्था में छुट्टी दे दी गई — हंसती, खेलती और दूध पीती हुई, जो आधुनिक, न्यूनतम इनवेसिव कार्डियक देखभाल की शक्ति का प्रमाण है।

अनन्या की मां ने भावुक होकर कहा, “हम तो सारी उम्मीद खो चुके थे। वो खाना नहीं खा रही थी, बढ़ नहीं रही थी, हर समय हांफती रहती थी। हमारे पास सर्जरी के पैसे नहीं थे। लेकिन मेडिका के डॉक्टरों ने उसे अपने बच्चे जैसा समझकर इलाज किया। सरकार और डॉक्टरों के सहयोग से आज हमारी बेटी ज़िंदा है और मुस्कुरा रही है।”

डॉ. अयनाभ देबगुप्ता, रीजनल चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर, मणिपाल हॉस्पिटल्स – ईस्ट ने कहा, “मणिपाल हॉस्पिटल्स का हमेशा यह प्रयास रहता है कि अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवा समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। शिशु सथी योजना के तहत बिना सर्जरी के हुए इस नवाचारात्मक उपचार ने न केवल मेडिका की टीम की चिकित्सकीय दक्षता को सिद्ध किया, बल्कि हमारी इस प्रतिबद्धता को भी बल दिया कि हम उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं हर किसी के लिए सुलभ बनाना चाहते हैं।”

यह उपलब्धि मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी विभाग के लिए एक गौरवपूर्ण मील का पत्थर है और यह इस बात को फिर से रेखांकित करती है कि संस्थान आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को भी विश्वस्तरीय हृदय देखभाल प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है।