बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले…. …

ख्वाइश थी क़ि दूर से ही क़र लेंगें दीदार उनका युहीं ख्वाबों क़ी ताबीर बनकऱ।
मगर अफ़सोस भटकते रह गए हम यूँही सड़कों पर, बेरुखी दग़ा दे गई उनकी तमाशा बनकर ।
हमने ये सोचा था कि देखेंगे मेजबानी का दिलकश नजारा मेहमान बनकर।
उनकी व्यवस्थाओं के दोष का इल्म नहीं था हमें।
बेबस होकर रह गए हम।
बिना दीदार किए आखिर हो गए रुकसत बड़े बे-आबरू बनकर।
ये चंद पंक्तियां उन लोगों को समर्पित है जो लोग आयोजन में शामिल होने के लिए राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम पहुंचे थे लेकिन वहां पर वक्त से पहले ही उनके लिए प्रवेश द्वार बंद कर दिए गए।
ताज्जुब की बात तो देखिए कि इतने बड़े आयोजन को देखने वाले राज्य सरकार के नुमाइंदों की जगह गुजरात से आई कंपनी को मॉनिटरिंग का जिम्मा सौंप दिया गया।
मीडिया के कई लोग जो इस आयोजन के साक्ष्य बनना चाहते थे उनके लिए ना तो कोई पास उपलब्ध थे और ना ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था । आखिर स्थानीय लोग अपने ही शहर में अजनबी बनकर बंद प्रवेश द्वार के खुलने का बेसब्री से इंतजार करते ही रह गए।
मीडिया से जुड़े लोगों के साथ वहां मौजूद सैकड़ों की तादाद में आए कई गणमान्य लोगों को भी निराश होना पड़ा।
तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद इस तरह के आयोजन में शामिल नहीं हो पाना सरकार की कमियों को उजागर करता है।