मजाक-मस्ती की तुगबन्दी में बन गया यादगार अमर गीत….

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रम्मय्या वस्ता वैय्या गीत.. सुनकर आज भी धड़कता है दिल…

राजकपूर द्वारा निर्मित फ़िल्म श्री 420 का गीत रम्मय्या वस्ता वैय्या जो उस जमाने में हर नौजवान व बच्चे-बूढ़े की जुबान पर छाया हुआ था। क्या आपको मालूम है कि इस गीत की शुरुआत कैसे
हुई?
चलिए आपको बता ही देते है ! आवारा फ़िल्म की सफलता के बाद सन 1955 में नरगिस को लेकर जब राजकपूर अपनी बड़े बजट की फ़िल्म “श्री 420” के निमार्ण में व्यस्त थे। राजकपूर चाहते थे कि उनकी ये फ़िल्म भी पिछली सफल फिल्मों की तरह कामयाब बने और इसके गीत हर उम्र के लोग हमेशा गुनगुनाते रहे। उस वक्त फ़िल्म के संगीतकार शंकर जय किशन व गीतकार शैलेन्द्र और गायिका लता मंगेश्कर सभी एक परिवार के सदस्यों की तरह फ़िल्म के निर्माण को लेकर अक्सर मीटिंग करते थे। जिसमे फ़िल्म की लोकेशन संवाद , गीत व संगीत पर चर्चा होती थी तब कहीं जाकर इसपर सहमति बनती थी। राजकपूर अपनी टीम के साथ अक्सर लोनावला खंडाला में फ़िल्म से जुड़ी योजना पर चर्चा कर रहे थे। लोनावला खंडाला से पहले एक खाने का ढाबा हुआ करता था राजकपूर अपनी टीम के साथ अक्सर वही रुककर चाय नाश्ता किया करते थे। इस ढाबे में रम्मय्या नाम का एक व्यक्ति था जिसे अक्सर गीतकार शेलेन्द्र मजाक में छेडा करते थे। मजाक में शेलेन्द्र उनकी भाषा मे रम्मय्या वस्ता वैय्या कहकर पुकारने लगे रममय्या वस्ता वैय्या का मतलब है रम्मय्या कब आओगे कहकर तरन्नुम में पुकारने लगे। इस तरह रम्मय्या वस्ता वैय्या तरन्नुम में पुकारते देख संगीतकार शंकर जयकिशन के मुंह से निकला मैने दिल तुझको दिया। फिर क्या था राजकूपर व उनके सभी साथी जिनमे मन्ना डे भी ये नजारा देख रहे थे सभी रम्मय्या वस्ता वैय्या के बोल पर गुनगुनाने लगे। फिर सभी की राय से बोल की इस तुगबन्दी को गीत का रूप दे दिया गया। इस तरह ये गीत राजकपूर की फ़िल्म की फ़िल्म का बेहतरीन नगमा बन गया।

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