बारिश की दो बूंदे..
आज की मौजूदा परिस्थितियों को देखकर मन मे जो भाव आये उन्हें शब्दों में डालने का प्रयास किया है..
कभी वो वक्त था जब रिम-झिम सावन की फुवारों पर बजती थी सरगम।
मगर आज बारिश की दो बूंदो से भी डरते है हम।
जिन दोस्तो के साथ नहाने के बहाने मचाया करते थे हुड़दंग,
आज भी उन पलों को भूले नही है हम।
लेकिन आज बारिश की दो बूंदों से भी डरते है हम ।।
उसके आने की आहट से एक पल में सहम जाते है कदम।
आज जिन हालातों से गुजर रहे है, सच मानों तो जमाने के दस्तूर को समझ रहे हम।
अब…तो बारिश की दो बून्दो से भी डरते है हम।
कभी सोचा भी ना था कि इस तरह मजबूर व लाचार हो जाएंगे हम।
चाहने वालों की इस भीड़ में इतने अकेले रह जाएंगे हम।
हौसला अभी कायम है टूटे नही है हम।
लेकिन बारिश की दो बून्दो से डरते है हम ।।
सुभाष कुमार-प्रेमबन्धु