बाद में ऐसा ना हो कि ” ना माया मिली ना राम” ! बुजुर्ग होने के नाम पर अपनो से ही हो गए दूर !

देहरादून । ना माया मिली न राम” एक हिंदी कहावत है जिसका अर्थ है कि ना तो सांसारिक सुख मिला और ना ही आत्मिक संतोष यह कहावत उस स्थिति को दर्शाती है जब कोई व्यक्ति दुविधा में पड़कर, सांसारिक सुखों (माया) और आध्यात्मिक मार्ग (राम) दोनों को खो देता है।

उम्रदराज होना ही बहु-बच्चों को बेघर करने का लाईसेंस नही है यह आज डीएम कोर्ट में पेश हुए वाद जिसमें डीएम ने निर्णय सुनाया है से सिद्ध हो गया है जहां एक राजपत्रित अधिकारी पद से सेवानिवृत्त एक पिता ने फ्लेट की तृष्णा में निष्ठुर बन अपने ही अल्प वेतनभोगी बीमार बहु-बेटे व 4 वर्षीय पौती को बेदखल, घर से बेघर करने की योजना बनाई।
जिला मजिस्ट्रेट कोर्ट में दाखिल वाद संगीता वर्मा पत्नी जुगल किशोर वर्मा (माता-पिता) बनाम अमन वर्मा पुत्र नकरोंदा सैनिक कालोनी बालावाला में जहां राजपत्रित अधिकारी पद सेवानिवृत पिता जिसकी आय 30 हजार तथा माता की मासिक आय 25 हजार अपने अल्पवेतनभोगी बेटे अमन व उसकी पत्नी मीनाक्षी जिनकी कुल मासिक आय 25 हजार है। अमन वर्मा एक छोटी प्राईवेट नौकरी से अपने परिवार की देखभाल करता है, जिसमें एक चार साल की पुत्री भी है, जो कि जीवन की इस अवस्था में है कि उसको समुचित देखभाल, लालन-पालन व प्रेम एवं स्नेह की आवश्यकता है।

जिला मजिस्ट्रेट ने अपनी कोर्ट में दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए पिता द्वारा दायर भरणपोषण अधिनियम वाद खारिज कर दिया है। जिला मजिस्ट्रेट कोर्ट का यह उन सभी प्रकरणों में नजीर साबित होगा जिनमें झूठे वाद में फसाया जाता है। इससे असहाय लाचारों में न्याय के प्रति सम्मान बढेगा। तथा कानन की आड़ में निर्दाेश लोगों को फसाने वालो के मंसूबे कमजोर पड़ेंगे तथा जनसामान्य में न्याय की आस बढ गई है।